१४ अगस्त, १९५७

 

 आज शामको प्रश्नोंका उत्तर देनेके स्थानपर मै चाहती हू कि हम श्रीअरविन्दकी स्मृतिमें ध्यान करें, इसपर ध्यान करें कि उस स्मृतिको अपने अंदर जीवंत कैसे बनाये रखा जाय और उस कृतज्ञताको भी, जो हमारे अंदर उस सबके लिये होनी चाहिये जो उन्होंनें किया और अब भी अपनी सदा ज्योतिर्मय, सजीव और सक्रिय चेतनामें इस महान् दिव्य चरितार्थता- के लिये कर रहे है । वे पृथ्वीपर इस दिव्य चरितार्थताकी केवल घोषणा करने ही नही, बल्कि उसे ससिद्ध करने भी आये थे और वे इसे सिद्ध करने- मे. लगे हुए हैं ।

 

       कल उनका जन्मदिन है, यह विश्वके इतिहासमें एक शाश्वत जन्म है ।